Bihar board Inter hindi
Bihar board Inter hindi question: बिहार बोर्ड इंटर हिंदी क्वेश्चन आंसर 2024
1. ‘उसने कहा था’ कहानी का केन्द्रीय भाव क्या है? [20204]
उत्तर-चन्द्रधर शर्मा गुलेरी द्वारा रचित कहानी ‘उसने कहा था’ एक प्रेम कहानी है। यह दिव्य प्रेम कहानी है। ऐसी कहानी देखने को नहीं मिलती है। अब की प्रेम कहानियाँ शरीर स्तर पर संचरित होती हैं। यह गुलेरी जी की कहानी है कि इसमें दिव्यता, उदात्तता और भावों की निष्ठता विद्यमान है। यह कहानी शुद्ध प्रेम की कहानी है। यह प्रेम की सात्विक कहानी हैं। यह कहानी तामसिकता से परहेज रखती है।
2. ‘उसने कहा था’ कहानी कितने भागों में बँटी हुई है? कहानी के कितने भागों में युद्ध का वर्णन है?
उत्तर- ‘उसने कहा था’ कहानी चन्द्रधर शर्मा गुलेरी ने लिखी है। यह कहानी पाँच खण्डों में विभक्त है। इस कहानी के तीन भागों में युद्ध का वर्णन आया है। दूसरे, तीसरे और चौथे भाग में युद्ध का शौर्ययुक्त वर्णन है। यह एक दिव्य कहानी बन गयी है।
3. जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी में क्यों नहीं शामिल हुए?
उत्तर-अमेरिका प्रवास के दौरान जे० पी० घोर कम्युनिस्ट थे। वह लेनिन और ट्राटस्की का समय था। 1924 में लेनिन मरे थे। 1924 में ही जे० पी० मार्क्सवादी बने थे। मार्क्सवाद के सभी ग्रंथ उन्होंने पढ़ डाले। रात को एक रशियन टेलर के घर रोज क्लास लेते थे। वहाँ से जब वे लौटे तो घोर कम्युनिस्ट थे। लेनिन ने राष्ट्रहित में अंग्रेजों को भगाने के लिए कांग्रेस में शामिल हुए। कम्युनिस्ट होकर भी वे अपने को कांग्रेस से अलग-थलग नहीं रख सके। आजादी की लड़ाई में भाग लेना था।
४. आन्दोलन के नेतृत्व के संबंध में जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे? आन्दोलन का नेतृत्व वे किस शर्त पर स्वीकार करते हैं?
उत्तर-भ्रष्ट केन्द्रीय सरकार को जेपी उलट देना चाहते थे। बिहार के छात्रों ने एक आन्दोलन चलाया। बाद में जेपी इसके नेता बने। यह क्रांति थी-संपूर्ण क्रांति। जेपी बार-बार छात्रों से कहते थे देश का भविष्य आपके हाथों में है। उत्साह है आपके अंदर, शक्ति है आपके अंदर, जीवनी है आपके अंदर, आप नेता बनिए। जेपी उन्हें सलाह देंगे। लेकिन छात्रों ने नहीं माना, उनको नेतृत्व करने के लिए बाध्य कर दिया।
जे०पी० ने तब कहा कि वे सबकी सलाह लेंगे। वे छात्रों की बात ज्यादा सुनेंगे। लेकिन शर्त थी कि फैसला उनका होगा। इस फैसले को
4. डायरी का लिखा जाना क्यों मुश्किल है?
उत्तर-डायरी लेखन एक आसान काम है। लेकिन उसमें सत्य की अभिव्यक्ति करना कठिन कार्य है। व्यक्ति अपने बारे में, परिवार और समाज के बारे में यथार्थ अभिव्यक्ति नहीं करना चाहता। तभी डायरी लेखन कठिन हो जाता है। डायरी लेखक संभव है अपनी आलोचना से बचना चाहता हो। ऐसी स्थिति में तो डायरी झूठ का पुलिंदा बनकर रह जाएगी।
5. डायरी क्या है?
उत्तर-डायरी-लेखन भी साहित्य-लेखन का एक प्रकार है। ईमानदार लेखकों के लिए यह क्षेत्र एक दहकता हुआ जंगल है। डायरी लेखन एक तटस्थ घोसला नहीं है। डायरी लेखकों के कर्म का साक्षी होता है। यह लेखकों के संघर्ष का प्रवक्ता है। डायरियाँ प्रतिभाशाली, संवेदनशील कवि-आलोचक के आत्मनिर्माण का प्रामाणिक अंतरंग साक्ष्य है। डायरी-लेखक को खुला, ईमानदार और विचारशील होना चाहिए।
6. रचे हुए यथार्थ और भोगे हुए यथार्थ में क्या संबंध है?
उत्तर-रचा हुआ यथार्थ भोगे हुए यथार्थ से अलग है। भोगा हुआ यथार्थ एक दिया हुआ यथार्थ है। हर आदमी अपना-अपना यथार्थ रचता है और उसे रचे हुए यथार्थ का एक हिस्सा दूसरों को दे देता है। हर एक का भोगा हुआ यथार्थ दूसरों के लिए दिए हुए हिस्से के यथार्थ का एक सामूहिक नाम है।
7. ‘धरती का क्षण’ से क्या आशय है?
उत्तर-यहाँ धरती का क्षण का तात्पर्य है यथार्थ घटना जो इस धरती पर घट रही है। नए-नए अनुभव इस धरती पर मनुष्य को होते रहते हैं। इन अनुभवों को पकड़कर, इन धरती के क्षणों को पकड़कर रचनाकार अपनी रचना को समृद्ध करता रहता है।
8. ‘जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती। क्यों? [20204]
उत्तर-बचपन से ही आपका एक ऐसे वातावरण में रहना अत्यंत आवश्यक है जो स्वतंत्रतापूर्ण हो। हममें से अधिकांश व्यक्ति ज्यों- ज्यों बड़े होते जाते हैं, त्यों–त्यों ज्यादा भयभीत होते जाते हैं, हम जीवन से भयभीत रहते हैं, नौकरी के छूटने से, परम्पराओं से, और इस बात से भयभीत रहते हैं कि पड़ोसी, पत्नी या पति क्या कहेंगे, हम मृत्यु से भयभीत रहते हैं। हममें से अधिकांश व्यक्ति किसी-न-किसी रूप में भयभीत हैं और जहाँ भय है वहाँ मेधा नहीं हो सकती।
9. लेखक के अनुसार सुरक्षा कहाँ है? वह डायरी को किस रूप में देखना चाहता है?
उत्तर-सुरक्षा डायरी में भी नहीं। वहाँ सिर्फ पलायन है। सुरक्षा कहीं हो सकती है। तो बाहर सूरज की रोशनी में, अँधेरे में नहीं। अँधेरे में सिर्फ छिपा जा सकता है, एक-एक पल की धुकधुकी के साथ। सुरक्षा चुनौती को झेलने में है, लड़ने में, पिसने में में और उ खटने में। बचाने